यहां पर्चियों के जरिए न्याय के लिए लगती है अर्जियां न्याय के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है यह धार्मिक स्थल
अल्मोड़ा से 8 किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ हाईवे पर स्थित चितई मंदिर में सर पर सफेद पगड़ी और हाथों में धनुष लिए सफेद घोड़े पर सवार प्रतिमा है जिन्हें उत्तराखंड में न्याय के देवता के नाम से जाना जाता है।
जी हां दोस्तों हम बात कर रहे हैं गोलू देवता के बारे में, मान्यता है कि अगर न्याय के लिए आप हर जगह से थक हार गए हैं, और आपको न्याय नहीं मिला तो आप यहां चिट्ठियों के द्वारा गोलू देवता को न्याय के लिए अर्जियां लगा सकते हैं और मनोकामना पूरी होने पर अपनी श्रद्धा अनुसार घंटियां चढ़ाकर गोलू देवता के अनुयाई उनका धन्यवाद करते हैं।
इस मंदिर की अपार श्रद्धा और अटूट विश्वास का अंदाजा यहां चढ़ी घंटियां और गोलू देवता के नाम लिखी गई इन चिट्ठियों से भी लगाया जा सकता है। हाल ही में प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी गोलू देवता के दर्शन के लिए गए थे और उन्होंने बताया कि गोलज्यू पर उनकी अटूट श्रद्धा और आस्था है।
इस मंदिर में सच्चे दिल से मांगी गई हर मन्नत पूरी होती है और हर जगह से थके हारे को न्याय मिलता है। यहां लोग ना सिर्फ उत्तराखंड से बल्कि देश विदेश से दर्शन करने आते हैं और चिट्ठियों के द्वारा गोलज्यू के समक्ष अपनी दिल की मुराद रखते हैं। स्थानीय लोगों के बीच गोलू देवता न्याय के देवता नाम से भी प्रसिद्ध है
गोलू देवता को क्यों माना गया है भैरव का अवतार
एक प्राचीन मान्यता के अनुसार कत्यूरी राजवंश के राजा झालूराई एक न्याय प्रिय तेजस्वी और महान राजा थे लेकिन सात रानियां होने के बाद भी उन्हें संतान सुख की प्राप्ति नहीं हो पा रही थी तभी ज्योतिषी और पंडितों के कहने पर झालूरई ने भैरव की तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर भैरव भगवान ने स्वयं राजा के घर पुत्र रूप में आने का वचन दिया और उन्हें देवताओं की बहन कलिंगा से विवाह करने को कहा जल्दी कलिंगा गर्भवती हो गई जिससे अन्य सात रानियां कलिंगा से जलने लगी और उन्होंने कलिंगा की संतान को मारने के लिए एक योजना बनाई जिसके तहत उन्होंने रानी से कहा कि प्रसव के वक्त अगर वह अपने बच्चे को देखेगी तो उसकी संतान मर जाएगी और प्रसव के बाद कलिंगा की संतान को गौशाला में फेंक दिया। जिससे गाय भैंस उसकी संतान को कुचल कर मार दे लेकिन बालक को कोई खरोच तक नहीं आई जिसे देख सातों रानियों ने उस बालक को नमक के ढेर में दबा दिया लेकिन नमक का ढेर भी उसका कोई अहित नहीं कर सका, इसके बाद सातों रानियों ने मिलकर उस बालक को नदी में बहा दिया और कलिंगा को बताया कि उसके गर्व से एक सिलबट्टे ने जन्म लिया है।
नवजात शिशु को एक मछुआरे ने बचा लिया और अपने बेटे की तरह पालने लगा गुजरते समय के साथ बालक बड़ा होता चला गया एक दिन उस बालक को सपना आया जिससे उसे पता चला कि वह कत्यूरी राजवंश के राजा झालूराई की संतान है। सब कुछ ज्ञात होने के बाद उसने अपने पिता (मछुआरे) घोड़े की मांग की लेकिन अपनी गरीबी के चलते और बेटे के शौक को देखते हुए उसके (मछुआरे) पिता ने उसे लकड़ी का घोड़ा दिला दिया।
अब तक वह छोटा बच्चा अपने भैरव अवतार को पहचान चुका था और रानियों को सबक सिखाने के लिए वह अपने लकड़ी के घोड़े को लेकर झालूराई की राजधानी की तरफ चल पड़ा राजधानी में तालाब के समीप सातों रानियां जल भर रही थी जिस पर वह छोटा बालक रानियों से हट करने लगा कि पहले मेरे घोड़े को पानी पीने दो फिर तुम जल भरना जिसे देख रानी हंसते हुए बोली अरे बालक लकड़ी का घोड़ा भी कहीं पानी पीता है तो इस पर वह बच्चा बोला जब औरत के पेट से पत्थर जन्म ले सकता है तो लकड़ी का घोड़ा पानी क्यों नहीं पी सकता यह सुन रानिया हैरान रह गई और राजा से बालक को दुर्व्यवहार के लिए दंडित करने को कहां जिस पर नन्हा सा बालक बोला की वही राजा झालूराई कि इकलौती संतान है और राजा को भगवान भैरव और राजा के बीच हुई सभी बातों के बारे में बताया जो सिर्फ राजा जानता था।
रानियों के षड्यंत्र के बारे में पता चलने पर राजा ने सातों रानियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई लेकिन अपनी इकलौती संतान के कहने पर राजा ने सातों रानियों की सजा माफ कर दी बस तभी से उस नन्हें बालक की पहचान तेजस्वी और न्याय प्रिय गोलू देवता के नाम से हुई जिन्हें आज के समय न्याय के देवता नाम से भी जाना जाता है।
रिपोर्टर कृष्णा बिष्ट