राज्य में धूमधाम ने मनाया इगास का लोकपर्व, दिया बाती की रोशनी से जगमगाये घर
उत्तराखंड : प्रदेशभर में एकादशी यानी बू़ढी दिवाली का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया गया है। गढ़वाल में इसे इगास और कुमाऊं में इकैसी के नाम से मनाया जाता है। धामी सरकार ने इस पर्व पर सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की है। शाम होते ही कई घरों में एक बार फिर दिये और मोमबत्तियां जलाई गई। दिवाली के 11 दिन बाद घर दीपों की रोशनी से घर फिर जगमगा उठे। लोगों ने मीठे पकवान बनाये। वहीं देवी.देवताओं की पूजा अर्चना के बाद भैला एक प्रकार की मशाल जलाकर उसे घुमाया। कुमाऊं के कई जिलों में इगास का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया गया।
उत्तराखंड के गढ़वाल में सदियों से दिवाली को बग्वाल के रूप में मनाया जाता है। कुमाऊं के क्षेत्र में इसे बूढ़ी दीपावली कहा जाता है। इस पर्व के दिन सुबह मीठे पकवान बनाए जाते हैं। रात में स्थानीय देवी-देवताओं की पूजा अर्चना के बाद भैला जलाकर उसे घुमाया जाता है और ढोल नगाड़ों के साथ आग के चारों ओर लोक नृत्य किया जाता है।
मान्यता है कि जब भगवान राम 14 वर्ष बाद लंका विजय कर अयोध्या पहुंचे तो लोगों ने दिए जलाकर उनका स्वागत किया और उसे दीपावली के त्योहार के रूप में मनाया। कहा जाता है कि गढ़वाल क्षेत्र में लोगों को इसकी जानकारी 11 दिन बाद मिली। इसलिए यहां पर दिवाली के 11 दिन बाद यह इगास मनाई जाती है।
वहीं, सबसे प्रचलित मान्यता के अनुसार गढ़वाल के वीर भड़ माधो सिंह भंडारी टिहरी के राजा महीपति शाह की सेना के सेनापति थे। करीब 400 साल पहले राजा ने माधो सिंह को सेना लेकर तिब्बत से युद्ध करने के लिए भेजा। इसी बीच बग्वाल (दिवाली) का त्यौहार भी था, परंतु इस त्योहार तक कोई भी सैनिक वापस न आ सका। सबने सोचा माधो सिंह और उनके सैनिक युद्ध में शहीद हो गए, इसलिए किसी ने भी दिवाली (बग्वाल) नहीं मनाई। लेकिन दीपावली के ठीक 11वें दिन माधो सिंह भंडारी अपने सैनिकों के साथ तिब्बत से दवापाघाट युद्ध जीत वापस लौट आए। इसी खुशी में दिवाली मनाई गई।